Bhaskar News Agency
Oct. 24, 2019
फर्रुखाबाद (के.पी सिंह) इस बार धनतेरस (25 अक्तूबर) पर भद्रा नहीं रहेगी। ऐसे में सुबह से लेकर रात तक कोई भी नई वस्तु खरीद सकते हैं या फिर नया काम शुरू कर सकते हैं। इस दिन सिद्ध ब्रह्मइंद्र योग और शुक्र प्रदोष भी पड़ रहा है। इस कारण इस पर्व का महत्व बढ़ गया है।
पंडित केए दुबे पद्मेश और आचार्य अमरेश मिश्रा ने बताया कि सूर्योदय से लेकर रात 8:33 बजे तक पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र है। इस कारण जो भी सामान जैसे सोना, चांदी, गणेश-लक्ष्मी आदि खरीदेंगे वह परिवार के लिए कल्याणकारी होगा। धनतेरस की शाम 5:11 बजे से रात 8:22 बजे तक सिद्ध योग रहेगा। इस काल में कुबेर, धनवंतरी का पूजन करें। कुबेर को कमल का पुष्प, कमल गट्टा, मखाना, खील, खिलौना, हल्दी की गांठ, हरी धनिया व गुड़ अर्पित करना शुभ रहेगा
धनतेरस की पूजा ऐसे करें
धनतेरस की पूजा का मुहूर्त दिनभर है। पूजा के लिए नया बर्तन, सोने या चांदी का सिक्का एक पाटे पर रख लें। इसके बाद चंदन, केसर, धूप, हल्दी, दूर्वा, शमी पत्र, घी और गुड़ या मिष्ठान से सोने या चांदी के सिक्के का और बर्तन का पूजन करें। यहां पर बर्तन का पूजन इसलिए विशेष है क्योंकि समुद्र मंथन में कलश के साथ माता लक्ष्मी प्रकट हुई थी। धनतेरस के दिन बर्तन का पूजन करने से सुख शांति, अन्न, धन की वृद्धि होती है।
वहीं सोने या चांदी के सिक्के में प्रत्यक्ष लक्ष्मी का वास माना जाता है। इस कारण सोने-चांदी के सिक्कों को पंचामृत में स्नान कराकर उसमें केसर, हल्दी, कुमकुम, रोली, सिंदूर लगाते हैं। इसके बाद लइया,गट्टा, खिलौना व अन्न का भोग लगाएं और सात घी के दीपक जलाएं। अगर संभव हो तो 21 हरे मोती शंख, 21 पीली कौड़ी और 21 काली कौड़ी को पीले वस्त्रों में बांधकर मां लक्ष्मी का मंत्र का जाप करें। इसके बाद इन्हें तिजोरी में रख दें।
ऐसे करें धनवंतरि की पूजा
धनवंतरि का पूजन करने के लिए धनतेरस की पूजा वाले स्थान के दाई ओर एक नया पाटा रखकर बीच में सतिया बनाएं। इसमें दाईं ओर ओम और बाईं ओर लक्ष्मी (श्री) बना लें। तीनों पर एक-एक सुपारी कलावा बांधकर रखें। बीच में धनवंतरि का पूजन करें। ओम वाले स्थान पर कुबेर का पूजन होगा और श्री वाले स्थान पर लक्ष्मी जी का।
सबसे पहले धनवंतरि पर जल देकर हल्दी कुमकुम का टीका लगाएं। ओम धनवंतराय नमो नम: मंत्र 16 बार पढ़ें। रोली, चावल, पान, लौंग, इलायची, हर, बहड़ा, आंवला, हल्दी व केसर चढ़ा दें। फल में सिंघाड़ा, कैथा, गन्ने के टुकड़े चढ़ाएं। इसके बाद ध्यान करें कि परिवार में कोई रोग या व्याधि न आएं।
गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति लेते समय ध्यान दें।गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति लेते समय विशेष ध्यान देना चाहिए। गणेश जी की सूंड़ दायीं ओर मुड़ी होनी चाहिए और एक दंत दिखना चाहिए। सवारी मूषक हो या सिंहासन पर विराजमान हों। वहीं लक्ष्मी कमल पुष्प पर विराजमान हों, क्योंकि कमल लक्ष्मी जी का प्रधान आसन है।
उल्लू को लेकर भ्रांति है क्योंकि उल्लू रात्रिचर पक्षी है। उल्लू के साथ में लक्ष्मी और अलक्ष्मी दोनों का वास हो जाता है। इस कारण गृहस्थ जीवन में कमल पर विराजमान लक्ष्मी जी की मूर्ति ही श्रेष्ठ है।