चौरासी आश्रम पर आज पहुंचेंगे हजारों श्रद्धालु

Bhaskar News Agency

Nov 12, 2019

सुलतानपुर (शिवशंकर पांडेय) कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर कई दिनों से हो रही भण्डारे की गोमती नदी के किनारे टीले पर स्थित चौरासी बाबा आश्रम पर भण्डारे को लेकर श्रद्धालुओं का जमावड़ा रविवार से ही शुरू हो गया है। कार्तिक पूर्णिमा पर होने वाले विशाल भण्डारे में यहां प्रदेश ही नही बल्कि देश विदेश से लोग आते हैं। जिसके मद्देनजर यहां कई दिनों से तैयारियां चल रही हैं। मंगलवार को जयसिंहपुर के दत्तात्रय चौरासी आश्रम बेलहरी में श्रद्धालुओं का जमावड़ा होगा। जिसमें हजारों लोगों के जुटने की संभावना जताई जा रही है। इसके मद्देनजर जहां परिसर में विशाल मैदान तैयार किया जा रहा है। वहीं श्रद्धालुओं के रहने व खाने की भी व्यवस्था हो रही है। विशाल भण्डारे का आयोजन चौरासी बाबा के संयोजन में  किया गया है।

इनसेट

चौरासी बाबा खुद कर रहे निगरानी

मन्दिर परिसर में विशाल भण्डारे का आयोजन किया गया है। जिसमें करीब 30 से 40 हजार की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की बात कही जा रही है। भण्डारे में आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण के लिए सैकडों महिलाएं व पुरुष सोमवार की भोर से ही प्रसाद बनवाने में लगे हुए हैं। जहां दर्जनों की संख्या में पुरुष आंटा गूंथने में लगे रहे, तो वहीं सैकड़ों महिलाएं पूड़ी बेलती नजर आयीं। पूड़ियों को निकालने के लिये दर्जनों कढ़ाइंयाँ चूल्हे पर चढ़ाई गई हैं। चौरासी महराज स्वयं टहल कर बन रहे प्रसाद का निरीक्षण कर उचित मार्गदर्शन लोगों को देते रहे।

ऐसे पहुंचा जाता है बाबा चौरासी आश्रम

जनपद सुल्तानपुर मुख्यालय से पूरब 28 किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी के किनारे टीले पर स्थित आश्रम तक पहुंचने के लिये मुख्यालय से बस या निजी साधनों से बरौंसा व बरौंसा से निजी साधनों व टेम्पो से आश्रम पहुंचा जा सकता है।

सुरक्षा के हैं विशेष इंतजाम

सीओ जयसिंहपुर दलवीर सिंह ने बताया की सुरक्षा की दृष्टिकोण से चौरासी बाबा आश्रम पर विशेष इंतजाम किए गए हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के लिये दूसरे थानों की फोर्स भी तैनात रहेगी। साथ ही महिला पुलिस की भी व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं को कोई दिक्कत न हो इसके लिए हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं।

क्या है किवदंती

लोगों की मानें तो दशकों पूर्व मन्दिर पर भंडारा चल रहा था। पूड़ियां निकाली जा रही थी, इस दौरान कढ़ाही में वनस्पति तेल खत्म हो गया। तभी महराज जी ने कनस्तर (टीन का डिब्बा) उठाया और गोमती नदी में कुछ दूर गए। थोड़ी देर बाद वह कनस्तर भर कर लौट आए और कढ़ाई में गोमती का जल डाल दिया। बताते हैं कि पूड़ियां निकलती रहीं किसी तरह का व्यवधान नही हुआ।